बसंत ऋतुचर्या ll Basant RituCharya

आज का विषय है बसंत ऋतुचार्य यानि की मौसम के अनुसार बदलाव करना और मार्च अप्रेल का सीजन बसंत का है ayurved शस्त्र में 6 ऋतु बताए गए है . शिशिर बसंत ग्रीष्म वर्षा शरद और हेमंत। साल मे 6 ऋतु और 1 ऋतु दो महीने का होता है । हमारे शरीर में वात पित्त कफ का बढ़ना और कम होना ऋतु के अनुसार भी होता है इसके आलवा जो ऋतु संधि काल है जब एक मौसम खत्म होता है और दूसरा शुरू होता है तब कुछ बीमारिया जैसे वायरल सर्दी जुकाम या अन्य कई बीमारी होती है । तो अगर हम ऋतुचार्य का पालन करते है तो हम स्वस्थ भी रहेगे और रितु बदलने से जो बीमारियाँ हमे होती हैं उससे भी बच जायेगे । मैंने इसक पहले भी ऋतुचर्या पर आर्टिकल लिखा है सर्दियों में कैसा हो खान पान तो आप वो विडिओ भी देख सकते है।

बसंत ऋतु ऋतुवों का राजा है बसंत ऋतु मतलब चैत्र और बैशाख महीना । वृक्षों पर नए पत्ते आते है फुल खिलते है । सर्दियों मे प्रकृति जैसे रुक सी जाती है बसंत ऋतु में फिर से जान आ जाती है हर तरफ हरियाली बिखरने लगती है । दक्षिण दिशा से बहने वाली हवाएँ स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है दक्षिणसे बहने वाली हवाओं के कारण बूढ़ों में भी जोश या जाता है तो जवानों का कहना ही क्या

अब जानते है आयुर्वेद शास्त्र में बसंत ऋतुचार्य के बारे में क्या कहा है । आचार्य बागभट्ट ने अष्टांग हृदय सूत्र स्थान के तीसरा अध्याय मे ऋतुचर्या अध्याय और आचार्य चरक ने सूत्र स्थान का छठा अध्याय यानि तसयाशीतिय अध्याय में ऋतुचर्या के बारे में बहुत विस्तार से वर्णन किया है ।

आज के आर्टिकल मे जानेगे बसंत ऋतु में कौन से दोष बढ़ते है इस दोष के बढ़ने से कौन से विकार होते है इस ऋतु में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए इन सबके बारे में हैं बताउगी । छोटे छोटे उपाय जिससे आप इस मौसम में रहेगे स्वस्थ

बंसन्त ऋतु

सर्दियों के मौसम में यानि हेमंत और शिशिर ऋतु इस मौसम में कफ दोष शरीर में जमा होने लगता है इसे संचय अवस्था कहते है और फिर बसंत ऋतु में गर्मी बढ़ने लगती है और सूर्य के किरणों के कारण जो कफ शरिर में जमा है वो पिघनललने लगता है इसे कफ का प्रकोप कहते है ये जो बढ़ा हुआ कफ है शरीर में बहुत सारे लक्षण और विकार उत्पन्न करता है उसमें है पाचक अग्नि का मंद होना भूख न लगना खाया हुया न पचना खाना खाने का मन न करना सर्दी जुकाम खांसी दमा जैसे कफज विकार त्वचा की कुछ बीमारिया चाहे खुजली फोड़े फुंसी या अन्य कफज विकार आलस आना नींद ज्यादा आना काम करने का मन न करने ये सब विकर उत्पन्न होते है ये सभी लक्षण दिखाई देते है अब देखते है ये जो बढा हुआ विकार है इससे कैसे मुक्ति पाए और इसे कैसे सही करें ।

बसंत ऋतु में जो कफ दोष बढा है उसे कम करने के लिए हमारे खाने में तीन स्वाद होंने चाहिए तीन रस है

कड़वा कसैला तीखा रस खाना है

जिनको भी तीखा चटपटेदार पसंद है वो इस ऋतु में सेवन कर सकते है तीखे अचार अजवाइन पिप्पली सोंठ इन सबमें तीखा रस है ।कड़वा कसैला के लिए करेला नीम मेथी हल्दी हरण ।सब्जियों में लौकी की सब्जी परवल मुली इन सब सब्जियों का सेवन कर सकते है इस तरह से इन छोटी छोटी चीजों को अपने खान पान में शामिल कर सकते है

सभी सेकी हुई चीजें इस मौसम मे खा सकते है जैसे मुगफली खाना पापड़ भुना हुआ मटर ये सभी भुनी हुई चीजें इस मौसम में खा सकते हैं कोई भी छीज खाने से पहले तवे पर गरम करे फिर खाए जैसे चावल बनाना है या रोटी बनानी है तो चवाल या आते को पहले 5 से 6 ईंट गरम कर ले तवे पोर फिर रोटी चावल बनाकर खाएँ इससेवों जल्दी हजम होगा और खाने मे मजा भी आएगा

नीम के पेड़ के जो नए नए पत्ते है उसमे मसे 5 से 10 पत्ते का सेवन सुबह चबाकर कर सकते है 15 से 20 दिन सेवन कीजिए इससे न सिर्फ कफ दोष सही होगा बल्कि पूरे साल हमे निरोगी रखेने में भी मदद करेगे इसमे काली मिर्च के दाने और शहद डालकर चबाकर कहा सकते है । ये कफ रोग को दूर करेगा जैसे सर्दी खांसी उलटी आलस्य फैटी लिवर ब्लाकिज को दूर करेगा । खासकर मलेरिया डेंगू ज्वार मे बचने के लिए भी नीम काली मिर्च शहद का उपयोग कर सकते है । त्वचा के रोग मे भी फायदेमंद है ।

चैत्र महीने की जो शुरुवात है इस दिन हिन्दू नववर्ष की शुरुवात होती है।

बसंत ऋतु में मीठा खट्टा खारा इनका सेवन कम करना चाहिए ये तीनों रस कफ दोष बढ़ते है और बसंत ऋतु में वैसे ही कफ दोष बढ़ हुआ है लेकिन जिनको मीठा खाना है या तला हुआ स्निग्ध पदार्थ खाना बहुत पसंद है तो उनको हेमंत और शिशिर ऋतु में इसका सेवन करना चाहिए और वैसे भी दिवाली में हम बहुत सारे व्यंजन बनाते है यानि सूखे मेवे का लड्डू भी बनाते है उस समय हमरी अग्नि प्रज्ज्वलित होती है तो जो भी हम खाएगे वो उसको अच्छी तरह से पचाता है परंतु बसंत ऋतु में ये अग्नि मंद है तो ऐसे तली भुनी मीठा पदार्थ ज्यादा खाएगे तो अग्नि पचा नहीं पाएगई इसलिए इस ऋतु में मीठा खट्टा खारा इन तीन रसो का कम से कम सेवन करना चाहिए

बंसन्त ऋतु में हल्का आहार लें

बसंत ऋतु में हल्का आहार ले ताकि हम उसे जल्द से जल्द उसका पाचन कर सके इसके साथ ही खाने में पुराना आनाज जैसे गेहू जऊ बाजरा जऊ ज्वार इससे बने रोटी या कोई भी व्यंजन का इस्तेमाल कर सकते है अगर पुराना अनाज नहीं मिलता तो जो भी आनाज बना रहे है उसे हल्का सा भून ले फिर इस्तेमाल करें

इस ऋतु में मूंग की दाल अरहर की दाल का उपयोग कर सकते हैं किन्तु उरद की दाल का प्रयोग न करें इसक साथ ही शहद का उपयोग कर सकते हैं शहद का प्रयोग कर सकते है शहद कफ को कम करने में बहुत मदद करता है पानी भी उबाल कर फिर ठंड कर्क पी सकते है पानी उबालते समय उसमे काली मिर्च अजवाइन सौंफ नागरमोथा इसका प्रयोग भी कर सकते है ये सब चीजें बढ़ हुआ कफ को कम करने में मदद करेगी और स्वास्थ्य में सुधार होगा

क्या पिए

शहद का पानी

सोंठ का पानी और भी फायदेमंद

छाछ जरूर पिए

कफ कम करगी पचन जठराग्नि तेज और शरीर की गंदगी बाहर

अब जानते है बसंत ऋतु में क्या क्या सेवन न करें ।

बसंत ऋतु में खान पान में ताली भुनी स्निग्ध मिठाई खोवा से मैदा से बना पदार्थ भैंस का दूध ये सब कफ को बढ़ाने वाली है इनका सेवन न करें लेकिन आप छाछ ले सकतेहै छाछ में जीरा अजवाइन हिंग कढ़ी पत्ता डालकर मसले वालचच आप सेवन कर सकते है

रहन सहन कैसा हो

इस ऋतु में सुबह जल्दी उठना है शारीरिक व्यायाम भी जरूर करें प्राणायाम योग सूर्यनमस्कर भी बहुत लाभदायक है

उधवर्तन यानि उबटन

शरीर में चने का आता जाऊ का आटा इसमे हल्दी और तेल मिलकर शरीर मे रगड़ जाता है इससे बढ़ हुआ कफ दोष कम करने में मदद करता है साथ ही चर्बी कम करता है बढ़े हुए कफ को कंट्रोल करता है तो उरधवर्तन भी बहुत लाभदायक है

स्नान

बसंत ऋतु में ठंडे पानी से स्नान न करें इसक लिए हल्का गुनगुना पानी इस्तेमाल कर सकते है नहाने का पानी में नीम का पत्ता डाल सकते है इससे शरीर में पसीने की दुर्गंध और स्किन इन्फेक्शन त्वचा रोग होने की संभावना नहीं होती है और त्वचा की बीमारिया जैस एफोड़े फुंसी कम होने में मद्दमिलती है

इस ऋतु में हमे दिन में भी नहीं सोना नहीं चाही तो ये सब क्रियाए कफ दोष को संतुलित करने में मदद करती है

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