Know your body type in ayurveda

जिस प्रकार प्रत्‍येक मनुष्‍यों की शारीरिक बनावट कद-काठी, बोल-चाल का तरीका, त्‍वचा का रंग, उनके व्‍यक्तिगत स्‍वभाव भिन्न भिन्न होते हैं उसी प्रकार आयुर्वेद के अनुसार प्रत्‍येक व्‍यक्ति का शारीरिक प्रकृति भी भिन्‍न-भिन्‍न होती है ।

आयुर्वेद (Ayurveda) के अनुसार शरीर पंचमहाभूत तत्‍व से निर्मित है और इसके तीन मुख्य रूप होते है जिसे वात, पित्‍त और कफ का नाम दिया गया है । ये तीनो जब शरीर में संतुलित (सम) अवस्‍था में होते हैं तब शरीर निरोग स्वस्थ रहता है इस स्थिाति में इन तीनों को धातु कहा गया है जब ये विषम स्थिति में होती है तब शारीर में कई तरह के रोग हो जाते हैं इस स्थिति में इसे दोष कहा जाता है । शारीरिक प्रकृति का निर्धारण शरीर में मौजूद तीन मूलभूत धातु वात, पित्‍त और कफ के आधार पर किया जाता है। जिसके शरीर जिस धातु की अधिकता होती है, मतलब जो दोष पाया जाता है, उसके देह या शरीर को उसी प्रकृति का माना जाता है । जैसे यदि किसी के शरीर में कफ धातु  की अधिकता है अर्थात कफ दोष है तो उसके शरीर को कफ प्रकृति का कहा जायेगा ।आयुर्वेद में त्रिदोष सिद्धांत को आयुर्वेद का रीढ़ माना गया है । इन मूलभूत प्रमुख धातुओं के कार्य इस प्रकार हैं-

वात

वात का अर्थ है हवा या वायु । वात का काम गति करना है । शरीर का चलना-फिरना, मुँह से बोलना, कान से सुनना, नसों में रक्‍त का संचार होना, मल-मूल-वायु का वेग और निष्‍कासन ये सभी क्रिया वात के कारण ही होते हैं ।

पित्‍त

पित्‍त का अर्थ अम्‍ल या अम्‍लीयता होता है । पित्‍त का कार्य रसों का निर्माण करना होता है । पाचक रस का निर्माण करना पाचन क्रिया कोे संचालित करना,पाचन को मजबूत बनाना आदि पित्‍त का कार्य होता है ।

कफ

कफ पृथ्वी और पानी तत्त्व से बना है इसका अर्थ बलगम जैसा गाढ़ा पदार्थ होता है । कफ का कार्य मांस का निर्माण करना या शरीर का भार तय करना होता है। इसके साथ-साथ यह मस्तिष्‍क को सक्रिय बनाये रखने का भी काम करता है .

त्रिदोष – Tridosha

उपरोक्‍त मूलभूत धातु वात, पित्‍त और कफ की विषमता, असंतुलन की स्थिति को त्रिदोष कहते हैं । जिस धातु की अधिकता हो जाये उसी के आधार पर, उसी के नाम से जाना जाता है-

वात दोष – Gout

सूखे, कसैले, तीखे, कड़वे खाद्य पदार्थ अधिक खाने से, मल-मूत्र के वेग के रोकने से, आवश्‍यकता सेअधिक परिश्रम या कसरत करने से, अधिक यौन क्रिया करने से, वात में असंतुलन आ जाता है, इसे वात दोष कहते हैं । वात दोष उत्‍पन्‍न होने पर त्‍वचा खुरदुरा होना, शारीरिक शिथलता आना, मुँह में कसैला स्‍वाद आना, शरीर एठेंन और दर्द हाेना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं ।

पित्‍त दोष – Gall Bladder

बहुत गर्म, मसालेदार, नमकीन, चटपटे भोज्‍य पदार्थ की अधिकता से पित्‍त दोष उत्‍पन्‍न होता है । इस दोष के उत्‍पन्‍न होने से मुँह का स्‍वाद खट्टा या तीखा जान पड़ता है, शरीर से अधिक पसीना आने लगता कभी-कभी बेहोशी भी हो सकती है । पेट में जलन हो सकता है । 

कफ दोष – Kapha Dosha

वसा युक्‍त, चिकनाई युक्‍त भोज्‍य पदार्थ अधिक मात्रा में लेने से, अधिक सोने से, कम सक्रिय रहने से या अधिक ठंड में रहने कफ दोष उत्‍पन्‍न होता है । इस दोष के उत्‍पन्‍न होने पर मुँह में नमकीन स्‍वाद प्रतित हो सकता है, पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है । त्‍वचा में पीलापन आ सकता है।

7 types of प्रकृतियां 

  1. वात
  2. पित्त
  3. कफ
  4. वात-पित्त
  5. पित्त-कफ
  6. वात-कफ
  7. वात-पित्त- कफ (सम प्रकृति

“शुक्र शोणित संयोगे यो भवेत् दोष उत्कटः”

प्रकृति को प्रभावित करने वाले कारण

  1. शुक्र एवं शोणित की प्रकृति (माता एवं पिता की प्रकृति)
  2. माता का आहार-विहार
  3. माता की अवस्था (उम्र)
  4. महाभूतों के विकार

प्रकृतियों की श्रेष्ठता

  1. सर्वश्रेष्ठ प्रकृति – सम प्रकृति
  2. कफ
  3. पित्त
  4. वात
  5. द्वंदज प्रकृतियां है

अपने शरीर का स्‍वयं परीक्षण करें – Test Your Body Yourself

आयुर्वेद के अनुसार आपका शरीर एक निश्चित प्रकृति का है । हमारे शरीर के बनावट हमारे स्‍वभाव, आदत के अनुसार हमारे शरीर की प्रकृति निर्धारित होती है । अपने शरीर की प्रकृति का निर्धारण हम स्‍वयं निम्‍न लक्षणों के आधार पर कर सकत हैं.

वात प्रकृति

“अल्पकेश: कृशो रूक्षो वाचालश्च मानस :।
आकाशचारी स्वप्नेषु वातप्रकृतिको नर : ।।”

  1. कम बाल 
  2. दुबला पतला
  3. रुखापन
  4. ज्यादा बोलने वाला 
  5. मन से चञ्चल
  6. सपने मे आसमान मे उड़ने वाला 

पित्त प्रकृति

“अकाले पलितैर्व्याप्तो धीमान स्वेदी च रोषण :।
 स्वप्नेषु ज्योतिषां द्रष्टा पित्तप्रकृतिको  नर :॥”

  1. बालों का समय से पहले सफ़ेद होना 
  2. बुद्धिमान् 
  3. अधिक पसीना आना
  4. गुस्से का स्वभाव 
  5. सपने मे तेज रोशनी को देखना 

कफ प्रकृति

“गंभीर बुद्धि स्थूल अंग स्निग्ध केशो महाबलः ।
स्वप्ने जलाशय लोकी कफप्रकृतिको नरः।।”

  1. गम्भीर स्वभाव के होते है
  2. मोटापा स्वस्थ अच्छी शारीर वाले होते है
  3. घने काले बाल 
  4. ताकतवर होते
  5. सपने मे पानी को देखने वाला 

अपने शरीर की प्रकृति जानने के बाद अपने प्रकृति के वर्धक भोज्‍य पदाथों के सेवन या नियंत्रित करें या बंद करें एवं इसके साथ इन दोषों के शमनकारी भोज्‍य पदार्थो का सेवन अधिक करें । वर्धक एवं शमनकारी भोज्‍य पदार्थो की सूची दोष के अनुसार इस प्रकार है-

वातवर्धक

गैस बनाने वाले भोज्‍य पदार्थ जैसे आलू एवं आलू से बने पदार्थ, छोले, गोभी आदि ।

वातशमनकारी

मेथी दाना, दालचीनी, गर्म पानी, शुद्धतेल, चूना, दही, छाछ, फल सब्जियों का रस, और रेशेदार भोजन आदि ।

पित्‍त वर्धक

चाय, काफी, मिर्च-मसाले, तिखे तले पदार्थ, शराब, बिड़ी सिगरेट, गुटका आदि मांसाहार, पनीर

पित्‍त शमनकारी

जीरा हिंग, देशी गाय का घी, नारियल खीरा, ग्‍वारभाटा घृतकुमारी, जामुन, घड़े का पानी

कफवर्धक

दूध, मलाई, चावल, पनीर, केला, कुल्‍फी तथा तले हुये पदार्थ ।

कफशमनकारी

गुड, मेथी, शहद, अदरक, सोठ, हल्‍दी, सौफ, गौमूत्र, लहसून

आयुर्वेद के अनुसार हर व्‍यक्ति का तासिर अर्थात शरीर की प्रकृति अलग-अलग होती है, समय के अनुरूप, मौसम के अनुकूल एवं आयु के अनुकूल दोष उत्‍पन्‍न हो सकते हैं । इन दोषों को अपने खान-पान एव रहन-सहन में अनुशासन लाकर दूर किया जा सकता है । आपका शरीर जिस प्रकृति का है उसके वर्धक भोज्‍य पदार्थ लेने से बचें एवं शमनकारी भोज्‍य पदार्थ का सेवन करें । अपने स्‍वाथ्‍य के अनुरूप योग्‍य वैद्य से सलाह लें.

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